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नज़्म
खालिद इरफ़ान
नज़्म
ख़िश्त-ए-बुनियाद-ए-कलीसा बन गई ख़ाक-ए-हिजाज़
हो गई रुस्वा ज़माने में कुलाह-ए-लाला-रंग
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
टूटेंगे कभी तो बुत आख़िर दौलत की इजारा-दारी के
जब एक अनोखी दुनिया की बुनियाद उठाए जाएगी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
गिर्या-ए-सरशार से बुनियाद-ए-जाँ पाइंदा है
दर्द के इरफ़ाँ से अक़्ल-ए-संग-दिल शर्मिंदा है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो सैर करने गए हैं बाहर पहन के बनयान और लंगोटी
बड़ी सी पगड़ी है सर के ऊपर लटक रही है गले से टाई