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नज़्म
कभी जब सोचता हूँ अपने बारे में तो कहता हूँ
कि तू इक आबला है जिस को आख़िर फूट जाना है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
यादों के बारे में और उदासी के बारे में और तन्हाई के बारे में
कोई बात यक़ीन से नहीं कही जा सकती
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
कभी अपने बारे में इतनी ख़बर ही न रक्खी थी
वर्ना बिछड़ने की ये रस्म कब की अदा हो चुकी होती
परवीन शाकिर
नज़्म
तो उन की राखियों को देख ऐ जाँ चाव के मारे
पहन ज़ुन्नार और क़श्क़ा लगा माथे उपर बारे