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नज़्म
मुझ से पहली सी मोहब्बत मिरी महबूब न माँग
मैं ने समझा था कि तू है तो दरख़्शाँ है हयात
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
तुम ने लिक्खा है मिरे ख़त मुझे वापस कर दो
डर गईं हुस्न-ए-दिल-आवेज़ की रुस्वाई से
प्रेम वारबर्टनी
नज़्म
नूर से कुछ इस तरह है चश्म तेरी तर-ब-तर
चाँदनी का अक्स जों उतरा हो सत्ह-ए-आब पर
जय राज सिंह झाला
नज़्म
कानों में बेले के झुमके आँखें मय के कटोरे
गोरे रुख़ पर तिल हैं या हैं फागुन के दो भँवरे
साग़र निज़ामी
नज़्म
कुछ तारे मिल कर तुम्हारी तस्वीर बनाते हैं आसमान में
तुम उन तारों से एक बार मिल आओ