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नज़्म
आख़िरी तकरार के बाद मैं ने ज़बान समेट ली है
अब मैं एक लफ़्ज़ भी मज़ीद नहीं बोलूँगा
अम्मार इक़बाल
नज़्म
يہ علم و حکمت کي مہرہ بازي ، يہ بحث و تکرار کي نمائش
نہيں ہے دنيا کو اب گوارا پرانے افکار کي نمائش
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
भाषा की तकरार नहीं मज़हब की दीवार नहीं
इन की नज़रों में इक हैं मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
गर मुकर्रर अर्ज़ करते हैं तो कहते हैं वो शोख़
हम से लेते हो मियाँ तकरार-ओ-हुज्जत ता-ब-कै