पंद-नामा
रोचक तथ्य
Josh, in his Nazm 'Pand-Nama', exhorts Majaz to abstain from excessive drinking. A rakish poet like Majaz, too, replied to Josh's Nazm by way of his Nazm 'Ba-Jawaab-e-Pand-Naama'. A funny anecdote is also related to this episode, Josh said to Majaz, 'Drink as you wish, but keep a watch (GhaDi) in front of you, to which Majaz instantly replied, 'I drink, but keeping a pot (GhaDa) afront'!
ऐ मजाज़ ऐ तराना-बार मजाज़
ज़िंदा पैग़म्बर-ए-बहार मजाज़
ऐ बरू-ए-समन-विशाँ गुल-पोश
ऐ ब कू-ए-मुग़ाँ तमाम ख़रोश
ऐ परस्तार-ए-मह-रुख़ान-ए-जहाँ
ऐ कमाँ-दार-ए-शाइरान-ए-जवाँ
तुझ से ताबाँ जबीन-ए-मुस्तक़बिल
ऐ मिरे सीना-ए-उमीद के दिल
ऐ मजाज़ ऐ मुबस्सिर-ए-ख़द-ओ-ख़ाल
ऐ शुऊर-ए-जमाल ओ शम-ए-ख़याल
ऐ सुरय्या-फ़रेब ओ ज़ोहरा-नवाज़
शाइर-ए-मस्त ओ रिंद-ए-शाहिद-बाज़
नाक़िद-ए-इश्वा-ए-शबाब है तू
सुब्ह-ए-फ़र्दा का आफ़्ताब है तू
तुझ को आया हूँ आज समझाने
हैफ़ है तू अगर बुरा माने
ख़ुद को ग़र्क़-ए-शराब-ए-नाब न कर
देख अपने को यूँ ख़राब न कर
शाइरी को तिरी ज़रूरत है
दौर-ए-फ़र्दा की तू अमानत है
सिर्फ़ तेरी भलाई को ऐ जाँ
बन के आया हूँ नासेह-ए-नादाँ
एक ठहराव इक तकान है तू
देख किस दर्जा धान-पान है तू
नंग है महज़ उस्तुख़्वाँ होना
सख़्त इहानत है ना-तवाँ होना
उस्तुख़्वानी बदन दुख़ानी पोस्त
एक संगीन जुर्म है ऐ दोस्त
शर्म की बात है वजूद-ए-सक़ीम
ना-तवानी है इक गुनाह-ए-अज़ीम
जिस्म और इल्म तुर्फ़ा ताक़त है
यही इंसान की नबुव्वत है
जो ज़ईफ़-ओ-अलील होता है
इश्क़ में भी ज़लील होता है
हर हुनर को जो एक दौलत है
इल्म और जिस्म की ज़रूरत है
कसरत-ए-बादा रंग लाती है
आदमी को लहू रुलाती है
ख़ुश-दिलों को रुला के हँसती है
शम-ए-अख़्तर बुझा के हँसती है
और जब आफ़त जिगर पे लाती है
रिंद को मौलवी बनाती है
मय से होता है मक़्सद-ए-दिल फ़ौत
मय है बुनियाद-ए-मौलविय्यत-ओ-मौत
कान में सुन ये बात है नश्तर
मौलविय्यत है मौत से बद-तर
इस से होता है कार-ए-उम्र तमाम
इस से होता है अक़्ल को सरसाम
इस में इंसाँ की जान जाती है
इस में शाइर की आन जाती है
ये ज़मीन आसमान क्या शय है
आन जाए तो जान क्या शय है
गौहर-ए-शाह-वार चुन प्यारे
मुझ से इक गुर की बात सुन प्यारे
ग़म तो बनता है चार दिन में नशात
शादमानी से रह बहुत मोहतात
ग़म के मारे तो जी रहे हैं हज़ार
नहीं बचते हैं ऐश के बीमार
आन में दिल के पार होती है
पंखुड़ी में वो धार होती है
जू-ए-इशरत में ग़म के धारे हैं
यख़-ओ-शबनम में भी शरारे हैं
हाँ सँभल कर लताफ़तों को बरत
टूट जाए कहीं न कोई परत
देख कर शीशा-ए-नशात उठा
ये वरक़ है वरक़ है सोने का
काग़ज़-ए-बाद ये नगीना है
बल्कि ऐ दोस्त आबगीना है
साग़र-ए-शबनम-ए-ख़ुश-आब है ये
आबगीना नहीं हबाब है ये
रोक ले साँस जो क़रीब आए
ठेस उस को कहीं न लग जाए
तेग़-ए-मस्ती को एहतियात से छू
वर्ना टपकेगा उँगलियों से लहू
मस्तियों में है ताब-ए-जल्वा-ए-माह
और सियह मस्तियाँ ख़ुदा की पनाह
ख़ूब है एक हद पे क़ाएम नशा
हल्का फुल्का सुबुक मुलाएम नशा
हाँ अदब से उठा अदब से जाम
ताकि आब-ए-हलाल हो न हराम
जाम पर जाम जो चढ़ाते हैं
ऊँट की तरह बिलबिलाते हैं
ज़िंदगी की हवस में मरते हैं
मय को रुस्वा-ए-दहर करते हैं
याद है जब 'जिगर' चढ़ाते थे
क्या अलिफ़ हो के हिन-हिनाते थे
मेरी गर्दन में भर के चंद आहें
पाँव से डालते थे वो बाँहें
अक़्ल की मौत इल्म की पस्ती
अल-अमाँ ला'नत-ए-सियह मस्ती
उफ़ घटा-टोप नश्शे का तूफ़ान
भूत इफ़रीत देव जिन शैतान
लात घूँसा छड़ी छुरी चाक़ू
लिब-लिबाहट लुआब कफ़ बदबू
तंज़ आवाज़ा बरहमी इफ़्साद
ता'न तशनीअ' मज़हका ईराद
शोर हू-हक़ अबे-तबे है है
औखियाँ गालियाँ धमाके क़य
मस-मसाहट ग़शी तपिश चक्कर
सोज़ सैलाब सनसनी सरसर
चल-चख़े चीख़ चुनाँ-चुनीं चिंघाड़
चख़-चख़े चाऊँ चाऊँ चील-चिलहाड़
लप्पा-डुक्की लताम लाम लड़ाई
हौल हैजान हाँक हाथा-पाई
खलबली कावँ कावँ खट-मंडल
हौंक हंगामा हमहमा हलचल
उलझन आवारगी उधम ऐंठन
भौंक भौं भौं भिऩन भिऩन भन-भन
धौल-धप्पा धकड़-पकड़ धुत्कार
तहलका तू तड़ाक़ तुफ़ तकरार
बू भभक भय बिकस बरर भौंचाल
दबदबे दंदनाहटें धम्माल
गाह नर्मी ओ लुत्फ़ ओ मेहर ओ सलाम
गाह तल्ख़ी ओ तुरशी ओ दुश्नाम
अक़्ल की मौत इल्म की पस्ती
अल-अमाँ ला'नत-ए-सियह मस्ती
सिर्फ़ नश्शे की भीगने दे मसें
इन को बनने न दे कभी मूँछें
अल-अमाँ ख़ौफ़नाक काला नशा
ओह रीश-ओ-बुरूत वाला नशा
अज़दर-ए-मर्ग ओ देव-ए-ख़ूँ-ख़्वारी
अल-अमाँ नश्शा-ए-''जटाधारी''
नश्शे का झुट-पुटा है नूर-ए-हयात
झुटपुटे को बना न काली रात
नश्शे की तेज़ रौशनी भी ग़लत
चौदहवीं की सी चाँदनी भी ग़लत
ज़ेहन-ए-इंसाँ को बख़्शता है जमाल
नश्शा हो जब ये क़द्र-ए-नूर-ए-हिलाल
ग़ुर्फ़ा-ए-अक़्ल भेड़ तो अक्सर
पर उसे कच-कचा के बंद न कर
रात को लुत्फ़-ए-जाम है प्यारे
दिन का पीना हराम है प्यारे
दिन है इफ़रीत-ए-आज़ की खनकार
रात पाज़ेब नाज़ुकी झंकार
दिन है ख़ाशाक ख़ाक धूल धुआँ
रात आईना अंजुमन अफ़्शाँ
दिन मुसल्लह दवाँ कमर बस्ता
रात ताक़-ओ-रवाक़-ओ-गुल-दस्ता
दिन है फ़ौलाद-ए-संग तेग़-ए-अलम
रात कम-ख़्वाब पंखुड़ी शबनम
दिन है शेवन दुहाइयाँ दुखड़े
रात मस्त अँखड़ियाँ जवाँ मुखड़े
दिन कड़ी धूप की बद-आहंगी
रात पिछले पहर की सारंगी
दिन बहादुर का बान बीर की रथ
रात चंपाकली अँगूठी नथ
दिन है तूफ़ान-ए-जुम्बिश-ओ-रफ़्तार
रात मीज़ान-ए-काकुल-ओ-रुख़्सार
आफ़्ताब-ओ-शराब हैं बैरी
बोतलें दिन को हैं पछल पैरी
कर न पामाल हुर्मत-ए-औक़ात
रात को दिन बना न दिन को रात
पी मगर सिर्फ़ शाम के हंगाम
और वो भी ब-क़द्र-ए-यक-दो जाम
वही इंसाँ है ख़ुर्रम-ओ-ख़ुरसंद
जो है मिक़दार ओ वक़्त का पाबंद
मेरे पीने ही पर न जा मिरी जाँ
मुझ से जीना भी सीख हैं क़ुर्बां
उस के पीने में रंग आता है
जिस को जीने का ढंग आता है
ये नसाएह बहुत हैं बेश-बहा
जल्द सो जल्द जाग जल्द नहा
बाग़ में जा तुलूअ' से पहले
ता निगार-ए-सहर से दिल बहले
सर्व-ओ-शमशाद को गले से लगा
हर चमन-ज़ाद को गले से लगा
मुँह अँधेरे फ़ज़ा-ए-गुलशन देख
साहिल ओ सब्ज़ा-ज़ार ओ सौसन देख
गाह आवारा अब्र-पारे देख
इन की रफ़्तार में सितारे देख
जैसे कोहरे में ताब-रु-ए-निकू
जैसे जंगल में रात को जुगनू
गुल का मुँह चूम इक तरन्नुम से
नहर को गुदगुदा तबस्सुम से
जिस्म को कर अरक़ से नम-आलूद
ताकि शबनम पढ़े लहक के दरूद
फेंक संजीदगी का सर से बार
नाच उछल दंदना छलांगें मार
देख आब-ए-रवाँ का आईना
दौड़ साहिल पे तान कर सीना
मस्त चिड़ियों का चहचहाना सुन
मौज-ए-नौ-मश्क़ का तराना सुन
बोस्ताँ में सबा का चलना देख
सब्ज़ा ओ सर्व का मचलना देख
शबनम-आलूद कर सुख़न का लिबास
चख धुँदलके में बू-ए-गुल की मिठास
शाइरी को खिला हवा-ए-सहर
इस का नफ़क़ा है तेरी गर्दन पर
रक़्स की लहर में हो गुम लब-ए-नहर
यूँ अदा कर उरूस-ए-शेर का महर
जज़्ब कर बोस्ताँ के नक़्श-ओ-निगार
ज़ेहन में खोल मिस्र का बाज़ार
नर्म झोंकों का आब-ए-हैवाँ पी
बू-ए-गुल रंग-ए-शबनमिस्ताँ पी
गुन-गुना कर नज़र उठा कर पी
सुब्ह का शीर दग़दग़ा कर पी
ताकि मुजरे को आएँ कुल बर्कात
दौलत जिस्म ओ इल्म ओ अक़्ल ओ हयात
ये न ता'ना न ये उलहना है
एक नुक्ता बस और कहना है
ग़ैबत-ए-नूर हो कि कसरत-ए-नूर
ज़ुल्मत-ए-ताम हो कि शो'ला-ए-तूर
एक सा है वबाल दोनों का
तीरगी है मआ'ल दोनों का
दर्खुर-ए-साहब-ए-मआ'ल नहीं
हर वो शय जिस में ए'तिदाल नहीं
शादमानी से पी नहीं सकता
जिस को हौका हो जी नहीं सकता
ऐ पिसर ऐ बरादर ऐ हमराज़
बन न इस तरह दूर की आवाज़
कोई बीमार तन नहीं सकता
ख़ादिम-ए-ख़ल्क़ बन नहीं सकता
ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ फ़र्ज़ है तुझ पर
दौर-ए-माज़ी का क़र्ज़ है तुझ पर
अस्र-ए-हाज़िर के शाइर-ए-ख़ुद्दार
क़र्ज़-दारी की मौत से होश्यार
ज़ेहन-ए-इंसानियत उभार के जा
ज़िंदगानी का क़र्ज़ उतार के जा
तुझ पे हिन्दोस्तान नाज़ करे
उम्र तेरी ख़ुदा दराज़ करे
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