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नज़्म
उक़ाबी शान से झपटे थे जो बे-बाल-ओ-पर निकले
सितारे शाम के ख़ून-ए-शफ़क़ में डूब कर निकले
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
साहिर लुधियानवी
नज़्म
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
झूटे टुकड़े खा के बुढ़िया तपता पानी पीती थी
मरती है तो मर जाने दो पहले भी कब जीती थी
साहिर लुधियानवी
नज़्म
गवाही दे रही है उस की यकताई पे ज़ात उस की
दुई के नक़्श सब झूटे हैं सच्चा एक नाम उस का