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नज़्म
सितम ये है ये कहने से झिजकता था वो फ़ह्हामा
था बेहद इश्तिआल-अंगेज़ बद-क़िस्मत ओ अल्लामा
जौन एलिया
नज़्म
कोई उस के जुनूँ का ज़मज़मा गा ही नहीं सकता
झलकती हैं मिरे अशआर में जौलानियाँ उस की
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
दीवारों के नीचे आ आ कर यूँ जम्अ हुए हैं ज़िंदानी
सीनों में तलातुम बिजली का आँखों में झलकती शमशीरें
जोश मलीहाबादी
नज़्म
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
आमिर रियाज़
नज़्म
वो मेरा शेर जब मेरी ही लय में गुनगुनाती थी
मनाज़िर झूमते थे बाम-ओ-दर को वज्द आता था
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तेरी पेशानी-ए-रंगीं में झलकती है जो आग
तेरे रुख़्सार के फूलों में दमकती है जो आग