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नज़्म
क़ल्ब में सोज़ नहीं रूह में एहसास नहीं
कुछ भी पैग़ाम-ए-मोहम्मद का तुम्हें पास नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
सागर से उभरी लहर हूँ मैं सागर में फिर खो जाऊँगा
मिट्टी की रूह का सपना हूँ मिट्टी में फिर सो जाऊँगा
साहिर लुधियानवी
नज़्म
गर मुझे इस का यक़ीं हो मिरे हमदम मरे दोस्त
रोज़ ओ शब शाम ओ सहर मैं तुझे बहलाता रहूँ
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
मैं रोज़-ओ-शब निगारिश-कोश ख़ुद अपने अदम का हूँ
मैं अपना आदमी हरगिज़ नहीं लौह-ओ-क़लम का हूँ
जौन एलिया
नज़्म
जब इस अँगारा-ए-ख़ाकी में होता है यक़ीं पैदा
तो कर लेता है ये बाल-ओ-पर-ए-रूह-उल-अमीं पैदा