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नज़्म
न तूफ़ाँ रोक सकते हैं न आँधी रोक सकती है
मगर फिर भी मैं उस क़स्र-ए-हसीं तक जा नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
सब हँसी रोक के कहती हैं निकालो इस को
इक परिंदा किसी इक पेड़ की टहनी पे चहकता है कहीं
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
हैं मुक़्तदिर तो बस अब रोक लें हुसाम-ए-जौर
ये बहती ख़ून की नदियाँ मुसीबतों का दौर
शिफ़ा कजगावन्वी
नज़्म
माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत
है रोक-टोक उन की हक़ में तुम्हारे नेमत
अल्ताफ़ हुसैन हाली
नज़्म
तिरे पूरे बदन पर इक मुक़द्दस आग का पहरा है
जो तेरी तरफ़ बढ़ते हुए हाथों के नाख़ुन रोक लेता है
तहज़ीब हाफ़ी
नज़्म
वहीं उस की यूरिश को सपनों पे यूँ रोक लेते
के हम तेरी मंज़िल नहीं, तेरा मलजा ओ मावा नहीं हैं?