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नज़्म
मौत और ज़ीस्त की रोज़ाना सफ़-आराई में
हम पे क्या गुज़रेगी अज्दाद पे क्या गुज़री है?
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
ये हम जो ज़ीस्त के हर इश्क़ में सच्चाइयाँ सोचें
ये हम जिन का असासा तिश्नगी, तन्हाइयाँ सोचें
अहमद फ़राज़
नज़्म
मौत और ज़ीस्त के संगम पे परेशाँ क्यूँ हो
उस का बख़्शा हुआ सह-रंग-ए-अलम ले के चलो
साहिर लुधियानवी
नज़्म
होंट हँसते हों दिखावे के तबस्सुम के लिए
दिल ग़म-ए-ज़ीस्त से बोझल रहे आज़ुर्दा रहे
साहिर लुधियानवी
नज़्म
इन्ही फ़सानों में खुलते थे राज़-हा-ए-हयात
उन्हें फ़सानों में मिलती थीं ज़ीस्त की क़द्रें