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नज़्म
ये इमारात ओ मक़ाबिर ये फ़सीलें ये हिसार
मुतलक़-उल-हुक्म शहंशाहों की अज़्मत के सुतूँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वही इक हुस्न है लेकिन नज़र आता है हर शय में
ये शीरीं भी है गोया बे-सुतूँ भी कोहकन भी है
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
रंग लाने को है मज़दूरों का जोश-ए-इंतिक़ाम
गिर पड़ेंगे ख़ौफ़ से ऐवान-ए-इशरत के सुतूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
एक पाँव पे खड़े सारे सुतूँ थक से गए हैं
ख़ुर्दा दाँतों की तरह हिलती हैं हर ताक़ में ईंटें
गुलज़ार
नज़्म
کمر سے ، اٹھ کے تيغ جاں ستاں ، آتش فشاں کھولي
سبق آموز تاباني ہوں انجم جس کے جوہر سے
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
रनपूर के मंदिर में हम को मस्जिद के सुतूँ मिल जाते हैं
वहदत की इसी चिंगारी से दिल मोम हुआ है पत्थर का
जाँ निसार अख़्तर
नज़्म
छोड़ी न ताब अपनी पर हुस्न-ए-दिल-सिताँ ने
जौहर भरे हैं तुझ में सन्ना-ए-दो-जहाँ ने
तिलोकचंद महरूम
नज़्म
पाँचवाँ है और छटा है और पतंगें और डोर
सातवाँ है, आठवाँ है और नवाँ करते हैं ज़ोर