aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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मगर हक़ीक़त का मो'तरिफ़ थाकि शाख़-ए-जाँ पर गुलाब खिलने के मौसमों को
कि शाख़-ए-जाँ पर गुलाब खिलने के मौसमों कोविदाअ' कहने की साअ'तें अब क़रीब-तर हैं
शाख़-ए-जाँ पर नई उम्मीद की कलियाँ सी महक उठती हैंसाँस ख़ुशबू से लदी जाती है
मिरी शाख़-ए-जाँ काट दी थीतिरे मरमरीं क़स्र के संग-ए-बुनियाद में
जो शाख़-ए-जाँ पर गुलों की सूरत खिले हुए थेवो सारे इम्काँ झलक रहे हैं
एक फूल का चमन में तलबगार मैं हुआवो फूल खिल रहा था सर-ए-शाख़ आरज़ू
सर-ए-शाख़-ए-रिफ़ाक़तजिस ने लोरी के बुने हैं बोल
ये सर-निगूँ हैं सर-ए-शाख़ फूल गुड़हल केकि जैसे बे-बुझे अंगारे ठंडे पड़ जाएँ
सोने लगती है सर-ए-शाम ये सारी दुनियाइन के हुजरों में न दर है न दरीचा कोई
इक फुदकता है सर-ए-शाख़ पे जिस तरह कोईआमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी की ख़ुशी में नाचे
अपने ही नम से महकती रही मौसम मौसमलफ़्ज़ उभरते रहे रुक रुक के सर-ए-शाख़-ए-नियाज़
तुम सर-ए-शाख़-ए-समन बाग़ में आया न करोबाग़ में मनचले भौंरे भी उड़ा करते हैं
सर-ए-शाख़-ए-निहाल-ए-ग़म चहकता हैकोई भूला हुआ बिसरा हुआ दुख
जो लोग वहाँ आए थे सब शोख़-ओ-जवाँ थेहर बात पे हँसते थे उछल पड़ते थे इक दम
سر شام ايک مرغ نغمہ پيرا کسي ٹہني پہ بيٹھا گا رہا تھا
1शहर-ए-जाँ
सर-ए-शामदम तोड़ती रौशनी
सर-ए-शाम सर्व पे फ़ाख़्तामुझे लोरियाँ थी सुना रही
उस बस्ती मेंशाम जहाँ पर ऐसे उतरे
बारिशों के मौसम सबशाम के दरीचों पर
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