ज़ख़्म-ए-तमन्ना
एक फूल का चमन में तलबगार मैं हुआ
वो फूल खिल रहा था सर-ए-शाख़ आरज़ू
वो फूल सद-हज़ार गुलिस्ताँ में इंतिख़ाब
वो फूल दिलकशी की कहानी का शोख़ बाब
दोशीज़गी का ख़्वाब बहारों की आब-ओ-ताब
हर पंखुड़ी नज़ाकत-ओ-नुज़हत लिए हुए
वो गुल था इत्र-दान-ए-मोहब्बत लिए हुए
जज़्बात की तपिश से मचलने लगा था मैं
गर्मी-ए-आरज़ू से पिघलने लगा था में
रेशम का जिस्म रखते हुए ख़ार बन गया
वो फूल मेरी जान का आज़ार बन गया
इक रोज़ मेरे साथ हुआ वाक़िआ' अजब
बेताब हो के दस्त-ए-तलब जब किया दराज़
हासिल जो सामने था बहुत दिल-ख़राश था
मानूस उँगलियाँ जो हुईं नोक-ए-ख़ार से
एक एक क़तरा
उन से टपकने लगा लहू
वो टीस थी कि
मुझ को
ख़ुदा याद आ गया
- पुस्तक : Intekhab-e-Kalam Hazin (पृष्ठ 39)
- रचनाकार : Author Junaid Hazin Lari,Compiled by Razzaq Afsar
- प्रकाशन : Bazm-e-Urdu, Mysore (1996)
- संस्करण : 1996
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