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नज़्म
दरिया में उन के मुर्दे बहाती है मुफ़्लिसी
बीबी की नथ न लड़कों के हाथों कड़े रहे
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जिन्हें आशिक़ों ने चाहा कि फ़लक से तोड़ लाएँ
किसी राह में बिछाएँ किसी सेज पर सजाएँ
साहिर लुधियानवी
नज़्म
वहीं ख़ुश हो गया करते ही वो हाथों पे निगाह
ग़ौर से हम ने जो इस बात को देखा वल्लाह
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
तुम्हारा दिल अन-गिनत आशिक़ों के बोसीदा जज़्बों से मुतअस्सिरा सर-ज़मीन है
लेकिन यक़ीन करो
इकराम बसरा
नज़्म
आशिक़ों के दिलों पर हाँ नहीं होते कि माँग निकाल कर आग भर दी जाए
इस लिए उन के दिल फट जाते हैं
नसरीन अंजुम सेठी
नज़्म
लिखाने नाम सच्चे आशिक़ों में जब भी हम निकले
इरादों में हमारे जाने कितने पेच-ओ-ख़म निकले