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नज़्म
हम पे ग़द्दारी की तोहमत ये नवाज़िश देखिए
देख लीजे ज़ह्र कितना उस रग-ए-बातिल में है
अख़्तर हुसैन शाफ़ी
नज़्म
न होगी भूक की ला'नत न बेकारी न बीमारी
न होगी बे-ईमानी और न अय्यारी न ग़द्दारी
प्रेम लाल शिफ़ा देहलवी
नज़्म
है फ़ितरत दुश्मनान-ए-दीन-ओ-ईमान-ओ-हक़ीक़त की
वतन से कर के ग़द्दारी मुलूकीय्यत से मिल जाना