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नज़्म
हमारा नर्म-रौ क़ासिद पयाम-ए-ज़िंदगी लाया
ख़बर देती थीं जिन को बिजलियाँ वो बे-ख़बर निकले
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो सदा आने वाले नए सुख के मौसम का क़ासिद बना है
उसी नर्म लहजे ने फिर मुझ को आवाज़ दी है
परवीन शाकिर
नज़्म
तिरा नन्हा सा क़ासिद जो तिरे ख़त ले कर आता था
न था मालूम उसे किस तरह के पैग़ाम लाता था
अख़्तर शीरानी
नज़्म
अली अकबर नातिक़
नज़्म
लो आ गए तुम्हारे दोस्त फिर क़ासिद बन
आशिक़ का हाल बुरा है इन का ये मुझे बताए जाना ऐसा कब तक चलेगा
गीतांजली गीत
नज़्म
क्या कहूँ तुझ को मैं क्या कह के पुकारों तुझ को
जैसे क़ासिद कोई इक प्यार में डूबे ख़त को
विनोद कुमार त्रिपाठी बशर
नज़्म
क़ासिद-ए-अब्र आ रहा है ले के हाँ पैग़ाम-ए-फ़ैज़
बारगाह-ए-एज़दी में किस की शुनवाई हुइ
शाह दीन हुमायूँ
नज़्म
ज़ोहरा कहने लगी ऐ बज़्म फ़लक के क़ासिद
ज़र्द रौ पहली ही मंज़िल में हुआ तो क्यूँ कर
तसद्द्क़ हुसैन ख़ालिद
नज़्म
फ़ज़ाओं में कोई नादीदा मा'लूम रस्ता है
जहाँ जज़्बात मुज़्तर रूह के सीमाब-पा क़ासिद
तसद्द्क़ हुसैन ख़ालिद
नज़्म
आज क़ासिद को इधर से जो गुज़रते दिखा
मुझ को ऐसा लगा जैसे कि तिरा ख़त आया