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नज़्म
रहमान फ़ारिस
नज़्म
कभी क़ुरआन पढ़ते पढ़ते हम गूलर की परियों के तसव्वुर में
ज़रा सा रेहल पर बस एक झपकी ले के
इशरत आफ़रीं
नज़्म
मुझे गुमान था कि तो रात और क़ुरआन के औराक़ से निकल कर
एक पुर-जलाल मर्दाना पैकर मेरे सामने होगा