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नज़्म
हज़ारों क़र्ज़ थे मुझ पर तुम्हारी उल्फ़त के
मुझे वो क़र्ज़ चुकाने का मौक़ा तो देते
ज़ुबैर अली ताबिश
नज़्म
कितने ख़ुशी से बैठे खाते हैं ख़ुश महल में
कितने चले हैं लेने बनिए से क़र्ज़ पल में
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
हम अहल-ए-ए'तिबार कितने बद-नसीब लोग हैं
किसी से भी तो क़र्ज़-ए-आबरू अदा नहीं हुआ
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
उन्हों ने खाया है इस दिन के वास्ते है उधार
कहे है हँस के क़रज़-ख़्वाह से हर इक इक बार
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
मिरे बेटे उन्हें थोड़ी सी ख़ुद्दारी भी दे देना
जो हाकिम क़र्ज़ ले के इस को अपनी जीत कहते हैं
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
इफ़्तिख़ार आरिफ़
नज़्म
मुसलमाँ क़र्ज़ ले कर ईद का सामाँ ख़रीदेंगे
जो दाना हैं वो बेचेंगे जो हैं नादाँ ख़रीदेंगे