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नज़्म
अब सब्र के मीठे फल आहें भर भर कर खाते हैं
मालन को बना बैठे ख़ाला माली को रुलाना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
अपनी भेड़ों बकरियों में कर लिया शामिल मुझे
आप के हाथों ने समझा मार के क़ाबिल मुझे
ताहिरा सुल्ताना मख़्फ़ी
नज़्म
अज़दहा वक़्त का मुँह खोले हुए
हाल के ज़हर से माज़ी के परी-ख़ाने को आग़ोश-ए-फ़ना में देते
बशीर ज़ैदी असीर
नज़्म
सच है असरार-ए-हक़ीक़त का ख़ज़ाना तू है
हाल-ओ-मुस्तक़बिल-ओ-माज़ी का ज़माना तू है
बिस्मिल इलाहाबादी
नज़्म
मुहर थी वो किसी तारीक निहाँ-ख़ाने की
आज तक मिल न सकी बार-ए-तमन्ना से नजात