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नज़्म
हर नस्ल इक फ़स्ल है धरती की आज उगती है कल कटती है
जीवन वो महँगी मुद्रा है जो क़तरा क़तरा बटती है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
उन्हें गुजरात से मद्रास से बंगाल से रग़बत
उन्हें कश्मीर के शिमला के इस्नोफॉल से रग़बत
अज़ीज़ अन्सारी
नज़्म
दो शम्ओं' की लौ पेचाँ जैसे इक शो'ला-ए-नौ बन जाने की
दो धारें जैसे मदिरा की भरती हुइ किसी पैमाने की