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नज़्म
अजब है ये ज़बाँ, उर्दू
कभी कहीं सफ़र करते अगर कोई मुसाफ़िर शेर पढ़ दे 'मीर', 'ग़ालिब' का
गुलज़ार
नज़्म
मैं वो नग़्मा हूँ जिसे प्यार की महफ़िल न मिली
वो मुसाफ़िर हूँ जिसे कोई भी मंज़िल न मिली
साहिर लुधियानवी
नज़्म
मंज़िल-ए-इ'ल्म के हम लोग मुसाफ़िर हैं मगर
रास्ता हम को दिखाते हैं हमारे उस्ताद
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
कुछ रोज़ का मुसाफ़िर-ओ-मेहमाँ हूँ और क्या
क्यूँ बद-गुमाँ हों यूसुफ़-ए-कनआ'न-ए-लखनऊ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
हवा उस के बाज़ू पे लिक्खा हुआ कोई ता'वीज़ बाँधे तो कहना
कि आवारगी ओढ़ कर साँस लेते मुसाफ़िर
मोहसिन नक़वी
नज़्म
जवानी की अँधेरी रात है ज़ुल्मत का तूफ़ाँ है
मिरी राहों से नूर-ए-माह-ओ-अंजुम तक गुरेज़ाँ है