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नज़्म
अब भी अब्बास का परचम है मिरी महफ़िल में
जादा-पैमा है 'नियाज़' अब भी मिरी मंज़िल में
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
लिखी 'नियाज़' ने भी ये नज़्म चाट खा कर
तुम भी सुनाओ बच्चो सब को ये नज़्म गा कर
अब्दुल मतीन नियाज़
नज़्म
मुज़्तरिब-बाग़ के हर ग़ुंचे में है बू-ए-नियाज़
तू ज़रा छेड़ तो दे तिश्ना-ए-मिज़राब है साज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
जो सरापा नाज़ थे हैं आज मजबूर-ए-नियाज़
ले रहा है मय-फ़रोशान-ए-फ़रंगिस्तान से पार्स
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
उस का मक़ाम-ए-बुलंद उस का ख़याल-ए-अज़ीम
उस का सुरूर उस का शौक़ उस का नियाज़ उस का नाज़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो मेरी जुरअतों पर बे-नियाज़ी की सज़ा देना
हवस की ज़ुल्मतों पर नाज़ की बिजली गिरा देना