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नज़्म
ख़ास तरह की सोच थी जिस में सीधी बात गँवा दी
छोटे छोटे वहमों ही में सारी उम्र बिता दी
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
तेरी 'उम्र-ए-रफ़्ता की इक आन है अहद-ए-कुहन
वादियों में हैं तिरी काली घटाएँ ख़ेमा-ज़न
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आमिर रियाज़
नज़्म
मुर्ग़-ज़ारों में दिखाती जू-ए-शीरीं का ख़िराम
वादियों में अब्र के मानिंद मंडलाती हुई
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
गुनाह के तुंद-ओ-तेज़ शोलों से रूह मेरी भड़क रही थी
हवस की सुनसान वादियों में मिरी जवानी भटक रही थी
नून मीम राशिद
नज़्म
दश्त में ख़ूँ, वादियों में ख़ूँ, बयाबानों में ख़ूँ
पुर-सुकूँ सहरा में ख़ूँ, बेताब दरियाओं में ख़ूँ
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
मेरे माथे पे अभी तक है शराफ़त का ग़ुरूर
ऐसे वहमों से ज़रा ख़ुद को निकालूँ तो चलूँ