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नज़्म
या ख़ुदा ये मिरी गर्दान-ए-शब-ओ-रोज़-ओ-सहर
ये मिरी उम्र का बे-मंज़िल ओ आराम सफ़र
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
उसे हम नापते थे ले के आँखों ही का पैमाना
ग़ज़ल-ख़्वाँ उस को जाना हम ने शाइर उस को गर्दाना
हफ़ीज़ जालंधरी
नज़्म
दहर को पंजा-ए-उस्रत से छुड़ाने दे मुझे
बर्क़ बन कर बुत-ए-माज़ी को गिराने दे मुझे
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
ख़्वाजा के दीवानों की आवाज़ों की सरमस्ती
वही ख़्वाजा मिरे ख़्वाजा मुईनुद्दीन की गर्दान
इशरत आफ़रीं
नज़्म
जिसे ख़याली क़िलों के ब्रिज गिराने का बड़ा तजरबा है
इस की ना-बूदी मेरी एक चुप के फ़ासले पर है
अहमद जावेद
नज़्म
कितने लहजों की कटारें मिरी गर्दन पे चलीं
कितने अल्फ़ाज़ का सीसा मिरे कानों में घुला
मुस्तफ़ा ज़ैदी
नज़्म
ख़िर्मन-ए-आ'दा पे अब बिजली गिराने के लिए
अहल-ए-ज़र की बे-कसी पर मुस्कुराने के लिए