वतन आज़ाद करने के लिए
हिन्द का उजड़ा चमन आबाद करने के लिए
दर्द के मारे हुओं को शाद करने के लिए
इक नया अहद-ए-जहाँ आबाद करने के लिए
क़स्र-ए-इस्तिब्दाद को बरबाद करने के लिए
झूम कर उट्ठो वतन आज़ाद करने के लिए
सफ़्हा-ए-हस्ती से बातिल को मिटाने के लिए
ख़िर्मन-ए-आ'दा पे अब बिजली गिराने के लिए
अहल-ए-ज़र की बे-कसी पर मुस्कुराने के लिए
या'नी अर्वाह-ए-सलफ़ को शाद करने के लिए
झूम कर उट्ठो वतन आज़ाद करने के लिए
फिर से भड़काओ दिलों में ग़ैरतों की आग को
रज़्म की जानिब बढ़ाओ जुरअतों की बाग को
पाँव के नीचे कुचल दो सीम-ओ-ज़र के नाग को
ज़िंदगानी को सरापा शाद करने के लिए
झूम कर उट्ठो वतन आज़ाद करने के लिए
मस्ती-ए-सहबा-ए-आज़ादी से लहराते चलो
अब्र की सूरत बुलंद-ओ-पस्त पर छाते चलो
क़हक़हों से लैली-ए-मग़रिब को शरमाते चलो
फिर दयार-ए-हिन्द को आबाद करने के लिए
झूम कर उट्ठो वतन आज़ाद करने के लिए
- पुस्तक : Urdu Mein Qaumi Shayari Ke Sau Saal (पृष्ठ 294)
- प्रकाशन : Uttar Prdesh Urdu Academy,Lucknow (1982)
- संस्करण : 1982
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