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नज़्म
और अब मेरी सारी दुनिया इस कोहरे में नहाई हुई हरियावल का हिस्सा है
मेरी ख़ुशियाँ भी और डर भी
मजीद अमजद
नज़्म
कभी झीलों के पानी में कभी बस्ती की गलियों में
कभी कुछ नीम उर्यां कमसिनों की रंगरलियों में
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
ये दुनिया दावत-ए-दीदार है फ़रज़ंद-ए-आदम को
कि हर मस्तूर को बख़्शा गया है ज़ौक़-ए-उर्यानी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो जिन के हाथ में रहता है परचम-ए-इंसाँ
हुए हैं उन के सब अफ़्कार-ए-अम्न अब उर्यां