आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "ہل"
नज़्म के संबंधित परिणाम "ہل"
नज़्म
मशरिक़ का दिया गुल होता है मग़रिब पे सियाही छाती है
हर दिल सन सा हो जाता है हर साँस की लौ थर्राती है
आनंद नारायण मुल्ला
नज़्म
हर मज़हब से ऊँची है क़ीमत इंसानी जान की
बच्चो तुम तक़दीर हो कल के हिन्दोस्तान की
साहिर लुधियानवी
नज़्म
दामन-ए-कोह में चलते हुए हल
सीना-ए-दहर पे इंसान के जबरूत की तारीख़ रक़म करते हैं