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नज़्म
यूँ न था मैं ने फ़क़त चाहा था यूँ हो जाए
और भी दुख हैं ज़माने में मोहब्बत के सिवा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
किसी को मौत से पहले किसी ग़म से बचाना हो
हक़ीक़त और थी कुछ उस को जा के ये बताना हो
मुनीर नियाज़ी
नज़्म
वो रोज़ काग़ज़ पे अपना चेहरा लिखता और गंदा होता
उस की औरत जो ख़ामोशी काढ़े बैठी थी
सारा शगुफ़्ता
नज़्म
पूछ न क्या लाहौर में देखा हम ने मियाँ-'नज़ीर'
पहनें सूट अंग्रेज़ी बोलें और कहलाएँ 'मीर'
हबीब जालिब
नज़्म
हीर की ताज़ा क़ब्र पे झुका हुआ बैठा है
उल्टी साँसें भरता राँझा ख़ाक से जाने क्या कुछ पूछ रहा है
आकाश 'अर्श'
नज़्म
वो कुछ बारिशों और कुछ आँधियों की ग़िज़ा बन चुकी हैं
कि फैली हुई रौशनाई के धब्बों ने
इक़बाल नाज़िर
नज़्म
ज़ुल्फ़-ए-ख़ूबाँ की तरह देहली की सड़कें हैं दराज़
और तांगा हाँकने वालों पे ज़ाहिर है ये राज़