मालिक-राम
साहब-ए-मुल्क-ए-इल्म मालिक-राम
मालिक-ए-मुल्क-ए-हिल्म मालिक-राम
मौलिद-ए-पाक फालिया की ज़मीं
हीर-ओ-रांझा की सर-ज़मीं के क़रीं
शहर-ए-गुजरात में रहे है ये मुक़ीम
अर्ज़-ए-लाहौर में हुई ता'लीम
नेकी-ओ-ख़ैर-ओ-ख़ल्क़ में फ़य्याज़
दोस्ती के बहुत बड़े नब्बाज़
कारवाँ कार-गाह-ए-हिकमत के
ला'ल इक मादन-ए-मोहब्बत के
तलबा के शफ़ीक़-ओ-यावर हैं
बहर तहक़ीक़ के शनावर हैं
अकमल-ओ-अफ़ज़ल-ओ-अलीम-ओ-ख़तीब
अकरम-ओ-आज़म-ओ-शरीफ़-ओ-नहीफ़
साहिब-ए-फिक्र-ओ-बंदा-ए-दरवेश
दोस्तों के बड़े अक़ीदे केश
उन के मस्लक में बे-रियाई है
उन की रिंदी में पारसाई है
नस्र में उन की नज़्म की बू-बास
नज़्म की इंतिहा के रम्ज़-शनास
किस क़दर आन-बान है उन की
बे-नियाज़ाना शान है उन की
अब भी चेहरे पे है शबाब का नूर
सर-बसर इल्म की शराब का नूर
बात करने में फूल झड़ते हैं
कभी लड़ते न ये झगड़ते हैं
इल्म की जुस्तुजू पे जान निसार
बहर-ए-तहक़ीक़ रोज़-ओ-शब बेदार
राह-ए-तहक़ीक़ पे चले हैं मुदाम
छान डाले इराक़-ओ-मिस्र-ओ-शाम
जर्मनी रूस बेल्जियम लंदन
हर जगह देखे इल्म के मादन
कारवाँ इल्म का है तेज़ ख़िराम
और उस के अमीर मालिक-राम
साहब-ए-इल्म-ओ-साहब-ए-अख़लाक़
दोस्ती में ये फ़र्द ख़ल्क़ में ताक़
आश्ती और इल्म का इक गंज
उन से पहुँचा नहीं किसी को रंज
रम्ज़-दाँ हैं ये फ़िक्र-ए-ग़ालिब के
हैं मुसन्निफ़ ये ज़िक्र-ए-ग़ालिब के
मोहतरम दोस्त अर्श-ए-फ़र्शी के
हैं मुरत्तब ये नज़र-ए-अर्शी के
हैं ब-हर-रंग आलिमों के हबीब
नज़र-ए-ज़ाकिर उन्हों ने दी तरतीब
अरबी फ़ारसी हो या उर्दू
उन की बातों में सब की है ख़ुश्बू
उन की तसनीफ़ औरत और इस्लाम
पाएगी दहर में बक़ा-ए-दवाम
ख़ूब लिखा तलामज़ा का हाल
ख़ानदान-ए-असद का हुस्न मक़ाल
गुल-ए-रा'ना है नुस्ख़ा-ए-अर्तंग
ये भी बा-कैफ़ है गुल-ए-सद-रंग
बरतना बम कि अरमुग़ाँ ब-दहम
बस ग़नीमत कि क़ल्ब-ओ-जाँ ब-दहम
इल्म रा दादा अज़ नज़र-ए-तम्कीं
रहनुमा-ए-ब-राह-ए-इल्म-ओ-यकीं
ज़ेहन फ़र्ख़न्दा मग़्ज़ ताबिंदा
बाद दर शहर-ए-इल्म पाइंदा
रो राज़-ए-हिर्स-ओ-आज़-ओ-तमा-ओ-हवस
नेक-ख़ू नेक-क़ल्ब-ओ-नेक-नफ़स
शहर-ए-ना-मुर्दमान-ओ-हद-ए-आज़ाद
बस हमें मर्द-अस्त ख़ुश-अतवार
मुल्क-ए-मा'नी का बादशाह है ये
शहर-ए-इंशा का कज-कुलाह है ये
ख़त्म है अर्श अब दुआ पे कलाम
ये रहें बा-मुराद-ओ-शाद मुदाम
हुस्न-ए-सीरत की शम्अ' जलती रहे
शाख़-ए-उम्मीद और फलती रहे
ज़िंदगी को मिले नशात तमाम
पुर हमेशा रहे सुरूर का जाम
नूर-ए-ख़ुर्शीद की तरह दमके
इल्म-ओ-तहक़ीक़ की ज़िया चमके
इल्म की रौशनी बढ़ाते रहें
हम को भी कुछ न कुछ सिखाते रहें
- पुस्तक : Kulliyat-e-Arsh (पृष्ठ 403)
- रचनाकार : Arsh Malsiyani
- प्रकाशन : Ali Imran Chaudhary
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