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नज़्म
वो फल क्या है जो हर रोज़ मिले हम को लेकिन हम उस का
अंतर देख न पाएँ उस की क़द्र न जानें
कृष्ण मोहन
नज़्म
वो अपनी नफ़्इ से इसबात तक माशर के पहुँचा है
कि ख़ून-ए-रायगाँ के अम्र में पड़ना नहीं हम को