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नज़्म
मेरी तमाम ज़िंदगी मा'रका-हाए-ख़ैर-ओ-शर
मेरी निगाह-ए-अर्श पर मैं कफ़-ए-ख़ाक-ए-ओ-ख़ुद-निगर
मीर यासीन अली ख़ाँ
नज़्म
जो बात है वो शोख़ी-ए-गुलदस्ता-ए-चमन
जो लफ़्ज़ है बहार-ए-कफ़-ए-गुल-फ़रोश है
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
लाहौर में देखा उसे मदफ़ूँ तह-ए-मर्क़द
गर्द-ए-कफ़-ए-पा जिस की कभी काहकशाँ थी
चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी
नज़्म
कम-बख़्त अजल थी ये जवानी की क़बा में
टुकड़े हैं किसी दिल के भी नक़्श-ए-कफ़-ए-पा में