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नज़्म
इबरत के हैं करिश्मे इबरत के हैं तमाशे
क़ुर्बान जान-ओ-दिल से वारी तुम्हारे सदक़े
मास्टर बासित बिस्वानी
नज़्म
बयाज़-ए-ज़िंदगी में अम्न का वरक़ ही साफ़ है
ये आफ़ियत का क़स्र है और क़स्र में शिगाफ़ है
अशरफ़ रफ़ी
नज़्म
यही मिरी ख़्वाब-गाह-ए-इशरत यही है मेरा निगार-ख़ाना
धुएँ की रंगीन बदलियों में पका रही है जहाँ वो खाना