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नज़्म
ये धूप ज़र्द ज़र्द सी ये चाँदनी धुआँ धुआँ
ये तलअतें बुझी बुझी, ये दाग़ दाग़ कहकशाँ
आमिर उस्मानी
नज़्म
मिरे पहलू-ब-पहलू जब वो चलती थी गुलिस्ताँ में
फ़राज़-ए-आसमाँ पर कहकशाँ हसरत से तकती थी
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
जबीन-ए-नूर जिस पे पड़ रही है नर्म छूट सी
ख़ुद अपनी जगमगाहटों की कहकशाँ लिए हुए