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नज़्म
यही वादी है वो हमदम जहाँ 'रेहाना' रहती थी
ब-रब्ब-ए-काबा उस की याद में उम्रें गँवा दूँगा
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मैं उस को का'बा-ओ-बुत-ख़ाना में क्यूँ ढूँडने निकलूँ
मिरे टूटे हुए दिल ही के अंदर है क़याम उस का
ज़फ़र अली ख़ाँ
नज़्म
मन के मंदिर को मुनव्वर करे नूर-ए-इस्लाम
का'बा-ए-दिल में रहे शाम-ओ-सहर राम का नाम
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
साग़र निज़ामी
नज़्म
सर-ज़मीन-ए-शेर काबा और तू इस का ख़लील
शाख़-ए-तूबा-ए-सुख़न पर हमनवा-ए-जिब्रईल
मिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी
नज़्म
सारी दुनिया मेरा काबा सब इंसाँ मेरे महबूब
दुश्मन भी दो एक थे लेकिन दुश्मन भी तो थे इंसाँ