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आतिश-ए-ख़ामोश

MORE BYमिर्ज़ा मोहम्मद हादी अज़ीज़ लखनवी

    सर-चश्मा-ए-अख़लाक़ वफ़ा-केश-ओ-वफ़ा-कोश

    मशरिक़-ए-इशराक़-ए-सफ़ा अब्र-ए-ख़ता-पोश

    यूँ तेरे दिल-ए-साफ़ में इशराक़-ए-मोहब्बत

    जिस तरह कि लौ सुब्ह को दे दुर्रे-ए-नया-गोश

    मैं कौन हूँ इक दिल हूँ जिसे ज़ब्त ने मारा

    कर देगी फ़ना मुझ को मिरी कोशिश-ए-ख़ामोश

    वो दिल हूँ इबारत जो है नज़्म-ए-अबदी से

    इक ख़ून का नुक़्ता हूँ मैं पुर-मअ'नी-ओ-पुर-जोश

    जिब्रील मिरे साथ रहे रोज़-ए-अज़ल से

    मय-ख़ाना-ए-इरफ़ाँ में शब-ओ-रोज़ क़दह-नोश

    कुछ मुँह से निकल जाएँ समझी हुई बातें

    रहने दो मुझे मजलिस-ए-मय में यूँही मदहोश

    सरसब्ज़ हूँ ज़ाहिर में मगर दिल-ए-ख़ूँ-गर्म

    जिस तरह हिना में है निहाँ आतिश-ए-ख़ामोश

    दिल पर ये सितम क्यूँ हो हम-जिंस पे तासीर

    काबा इसी ग़म में नज़र आता है सियह-पोश

    अय्यूब नहीं हूँ कोई मासूम नहीं हूँ

    ता-चंद मज़ालिम पे रहूँ साकित-ओ-ख़ामोश

    हैं जितने अक़ारिब वो अक़ारिब से हैं बद-तर

    अहबाब हैं वो ख़ुद-ग़रज़-ओ-ज़ूद-फ़रामोश

    दिल साफ़ नहीं सब हैं सुख़न-साज़-ओ-सुख़न-चीं

    ये मेहर तो है ज़हर अगर नीश में हो नोश

    कहते हैं जिसे दोस्त वो इस दौर में अन्क़ा

    समझे हैं जिसे मेहर वो इस अहद में रू-पोश

    किस दौर में आए हैं हम मज्लिस-ए-साक़ी

    जब रिंद-ए-ख़राबात-नशीं हो गए मदहोश

    दिल क्या मिरी आँखों का है टूटा हुआ सोता

    तूफ़ान उठा देंगे यही चश्मा-ए-ख़स-पोश

    ठोकर से जिलाता हूँ मज़ामीन-ए-कुहन को

    है फ़ित्ना-ए-महशर मिरी उतरी हुई पा-पोश

    हम-संग जवाहिर कभी पत्थर नहीं होता

    हर चंद तराशे कोई सन्ना-ए-सफ़ा-कोश

    गो मुझ को ख़ुदा-दाद तबीअ'त ने सँवारा

    मुजरिम हूँ अगर हूँ कभी एहसान-फ़रामोश

    तरकश में मिरे तीर बहुत कम हैं मगर हैं

    ऐसे कि उड़ा दें क़दर-अंदाज़ के जो होश

    पिंदार-ए-ख़ुदी है अज़ीज़ उन को तो हमें किया

    हम इश्क़ के बंदे हैं वफ़ा-केश-ओ-वफ़ा-कोश

    स्रोत :
    • पुस्तक : Auraq-e-Aziz (पृष्ठ 89)
    • रचनाकार : Aziz Lakhnavi
    • प्रकाशन : Nusrat Publisher Aminabad Lucknow

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