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नज़्म
क़ल्ब-ए-इंसानी में रक़्स-ए-ऐश-ओ-ग़म रहता नहीं
नग़्मा रह जाता है लुत्फ़-ए-ज़ेर-ओ-बम रहता नहीं
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गुलज़ार
नज़्म
जिन में रहते हैं महाजन जिन में बस्ते हैं अमीर
जिन में काशी के बरहमन जिन में काबे के फ़क़ीर
मख़दूम मुहिउद्दीन
नज़्म
लक्ष्मी की मोहब्बत ने दिल मोह लिया इतना
मुँह मोड़ के का'बे से पहुँचे सू-ए-बुत-ख़ाना
ज़रीफ़ लखनवी
नज़्म
अच्छे नहीं सफ़र जो करें सैर को शरीक
का'बे के ज़िक्र में न करो दैर को शरीक