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नज़्म
घर में बैठे साधू बन कर अब इल्म की माला जपते हैं
ख़रगोशों के पीछे जंगल में कुत्तों को भगाना छोड़ दिया
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
कुत्तों की दुम टेढ़ी क्यूँ होती है
ये चितकबरी दुनिया जिस का कोई भी किरदार नहीं है
अख़्तरुल ईमान
नज़्म
बन में हमारे जो भी आए सैर मज़े से वो करे
आए हज़ार बार ख़ुद कुत्तों को साथ लाए क्यों
राजा मेहदी अली ख़ाँ
नज़्म
बच्चे गलियों में फिरें आवारा कुत्तों की तरह
और सड़कों पर बिकें कुछ जिस्म फूलों की तरह