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नज़्म
ख़ुमार-ए-शब में गुलाब-रुत की रफ़ाक़तों से महक रही हूँ
वो नर्म ख़ुशबू की तरह दिल में उतर रहा है
नाज़ बट
नज़्म
विसाल-रुत की ये पहली दस्तक ही सरज़निश है
कि हिज्र-मौसम ने रस्ते रस्ते सफ़र का आग़ाज़ कर दिया है