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नज़्म
मर्दों के लिए लाखों सेजें, औरत के लिए बस एक चिता
औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाज़ार दिया
साहिर लुधियानवी
नज़्म
पस-ए-मर्ग ख़ाक हुए बदन वो कफ़न में हों कि हों बे-कफ़न
न मिरी लहद कोई और है न तिरी चिता कोई और है
दिलावर फ़िगार
नज़्म
जान कर भी क्या कर लेती वो भी एक वैश्या थी
काम उन का लोगों को सुख देना था चिंता नहीं