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नज़्म
इस तेज़ हवा में ख़ैर नहीं है ऊँची पगड़ी वालों की
एहसास-ए-ख़ुदी मज़लूमों का अब चौंक के करवट लेता है
जमील मज़हरी
नज़्म
मगर दूर एक अफ़्सुर्दा मकाँ में सर्द बिस्तर पर
कोई दिल है कि हर आहट पे यूँ ही चौंक जाता है
साहिर लुधियानवी
नज़्म
चौक चौक पर गली गली में सुर्ख़ फरेरे लहराते हैं
मज़लूमों के बाग़ी लश्कर सैल-सिफ़त उमडे आते हैं