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नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
वो सूद-ए-हाल से यकसर ज़ियाँ-काराना गुज़रा है
तलब थी ख़ून की क़य की उसे और बे-निहायत थी
जौन एलिया
नज़्म
हबीब जालिब
नज़्म
जिस की पीरी में है मानिंद-ए-सहर रंग-ए-शबाब
कह रहा है मुझ से ऐ जूया-ए-असरार-ए-अज़ल
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
गरचे मिल-बैठेंगे हम तुम तो मुलाक़ात के बा'द
अपना एहसास-ए-ज़ियाँ और ज़ियादा होगा
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
इन दमकते हुए शहरों की फ़रावाँ मख़्लूक़
क्यूँ फ़क़त मरने की हसरत में जिया करती है
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
हुस्न-ए-अज़ल की है नुमूद चाक है पर्दा-ए-वजूद
दिल के लिए हज़ार सूद एक निगाह का ज़ियाँ!
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
हर सुब्ह है ये ख़िदमत ख़ुर्शीद-ए-पुर-ज़िया की
किरनों से गूँधता है चोटी हिमालिया की