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नज़्म
या छोड़ें या तकमील करें ये इश्क़ है या अफ़साना है
ये कैसा गोरख-धंदा है ये कैसा ताना-बाना है
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ख़ुशा वो दौर-ए-बे-ख़ुदी कि जुस्तुजू-ए-यार थी
जो दर्द में सुरूर था तो बे-कली क़रार थी
आमिर उस्मानी
नज़्म
काश तू 'साक़िब' को भी अपना बना ले राज़-दार
जुस्तुजू-ए-राज़ में मुद्दत से है वो बे-क़रार
साक़िब कानपुरी
नज़्म
गरेबाँ चाक हो मजनूँ-सिफ़त गर शौक़-ए-लैला है
फिरा कर दश्त-ए-वहशत में मिसाल-ए-क़ैस तू पहले
नारायण दास पूरी
नज़्म
ये कस दयार-ए-अदम में मुक़ीम हैं हम तुम
जहाँ पे मुज़्दा-ए-दीदार-ए-हुस्न-ए-यार तो क्या