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मज़दूर

MORE BYजमील अज़ीमाबादी

    बार-ए-हस्ती से परेशान नज़र आता है

    रंग-ए-दुनिया पे वो हैरान नज़र आता है

    बज़्म-ए-दानिश में पशेमान नज़र आता है

    यूरिश-ए-ग़म से वो हलकान नज़र आता है

    शिद्दत-ए-कर्ब से बे-जान नज़र आता है

    पैकर-ए-दर्द वो इंसान नज़र आता है

    सुब्ह-दम खेत में खलियान में कोहसारों में

    शाम तक रेत के उठते हुए तूफ़ानों में

    शाह-राहों में कभी शहर के ऐवानों में

    तंग गलियों में कभी गाँव के मैदानों में

    शिद्दत-ए-कर्ब से बे-जान नज़र आता है

    पैकर-ए-दर्द वो इंसान नज़र आता है

    पा-ब-ज़ंजीर वो जकड़ा हुआ ख़र-कारों में

    कोह-ओ-सहरा में कभी दश्त में वीरानों में

    मेले ठेले में कभी आम गुज़रगाहों में

    सब्ज़ा-ज़ारों में कभी उजड़े गुलिस्तानों में

    शिद्दत-ए-कर्ब से बे-जान नज़र आता है

    पैकर-ए-दर्द वो इंसान नज़र आता है

    रेग-ज़ारों में सुरंगों में निहाँ-ख़ानों में

    किश्त-ए-वीराँ में कभी गाँव के खलियानों में

    रिज़्क़ की खोज में जंगल में बयाबानों में

    सुब्ह ता-शाम मगन नित-नए अरमानों में

    शिद्दत-ए-कर्ब से बे-जान नज़र आता है

    पैकर-ए-दर्द वो इंसान नज़र आता है

    शोरिश-ए-दर्द से दिन-रात सिसकता मज़दूर

    जुस्तुजू-ए-रह-ए-मंज़िल में भटकता मज़दूर

    ज़ेब-ओ-ज़ीनत की महाफ़िल से झिझकता मज़दूर

    अपनी मेहनत के पसीने में महकता मज़दूर

    शिद्दत-ए-कर्ब से बे-जान नज़र आता है

    पैकर-ए-दर्द वो इंसान नज़र आता है

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