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नज़्म
अली सरदार जाफ़री
नज़्म
ये झमकी रंगत होली की जो देखने वाले दंग हुए
महबूब परी-रू भी निकले कुछ झिजक झिजक कुछ ठिठक ठिठक
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
जितना नापाक है तन उतना मिरा मन तो नहीं
क्यूँ ठिठकता है झिजकता है मैं नागन तो नहीं
इज़हार मलीहाबादी
नज़्म
मैदान-ए-नौहा-ख़्वाँ में आ के ठिठक गई है
मैदान-ए-नौहा-ख़्वाँ में इक कैनवस रखा है