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नज़्म
शब्नमिस्तान-ए-तजल्ली का फ़ुसूँ क्या कहिए
चाँद ने फेंक दिया रख़्त-ए-सफ़र आज की रात
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
तुझ को तकलीफ़-ए-समाअ'त रही मेरी आवाज़
आँसूओं से न हुई सर्द तिरी आतिश-ए-नाज़
अफ़सर सीमाबी अहमद नगरी
नज़्म
दिल के हर क़तरे में तूफ़ान-ए-तजल्ली भर दे
बत्न-ए-हर-ज़र्रा से इक महर-ए-मुबीं पैदा कर