हुज़ूरी
हुज़ूरी में ये मुश्किल थी कि हो क्या कुछ बयाँ पहले
वफ़ा का ज़िक्र पहले या जफ़ा की दास्ताँ पहले
नियाज़-ओ-नाज़ में फ़र्क़-ए-मरातिब कोई क्या समझे
जबीं पहले झुकी या खिंच के आया आस्ताँ पहले
वही है वादी-ए-ऐमन वही तूर-ए-तजल्ली है
मगर मैं सीख लूँ अहल-ए-मोहब्बत की ज़बाँ पहले
कभी इक आन में सोज़-ए-नज़र से जल उठे पर्दे
कभी बरसों हुए ताब-ए-नज़र के इम्तिहाँ पहले
बस इक दो गाम और आगे है इस के मंज़िल-ए-इरफ़ाँ
अगर तय हो सके ये मंज़िल-ए-वहम-ओ-गुमाँ से पहले
ख़िरद भी रहबर-ए-मंज़िल है लेकिन मो'तबर कम है
ये शर्त-ए-अव्वलीं है दिल की हो ले हम-इनाँ पहले
'मुनीर' आसाँ नहीं है राह-ए-उल्फ़त से गुज़रना भी
ये लाज़िम है कि हो ले ख़ूगर-ए-ज़ब्त-ए-फ़ुग़ाँ पहले
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