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नज़्म
तेरी आँखों के सिवा दुनिया में रक्खा क्या है
तू जो मिल जाए तो तक़दीर निगूँ हो जाए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
संग-ए-तुर्बत है मिरा गिरवीदा-ए-तक़रीर देख
चश्म-ए-बातिन से ज़रा इस लौह की तहरीर देख
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
लाश काँधे पर ख़ुद अपने जज़्बा-ए-तकरीम की
मुल्तजी चेहरे पे लहरें सी उम्मीद-ओ-बीम की
जोश मलीहाबादी
नज़्म
जिसे तुम नहीं सुन सकोगे
शायद ये तुम्हारे लिए लिखी जाने वाली तक़रीर का इब्तिदाई हिस्सा है
ज़ीशान साहिल
नज़्म
बज़्म में पढ़ता हूँ मैं नथुने फुला कर चीख़ कर
और इस से पेशतर तक़रीर फ़रमाता हूँ मैं