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नज़्म
ता'मीर के रौशन चेहरे पर तख़रीब का बादल फैल गया
हर गाँव में वहशत नाच उठी हर शहर में जंगल फैल गया
साहिर लुधियानवी
नज़्म
जोश मलीहाबादी
नज़्म
सर-निगूँ रहती हैं जिस से क़ुव्वतें तख़रीब की
जिस के बूते पर लचकती है कमर तहज़ीब की
जोश मलीहाबादी
नज़्म
ज़मीं चीं-बर-जबीं है आसमाँ तख़रीब पर माइल
रफ़ीक़ान-ए-सफ़र में कोई बिस्मिल है कोई घाएल
असरार-उल-हक़ मजाज़
नज़्म
बाग़बाँ जो थे वो ख़ुद थे महव-ए-तख़रीब-ए-चमन
अल-ग़रज़ बिगड़ी हुई थी अंजुमन की अंजुमन
कुँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
नज़्म
कभी अपनी अदा-ए-दिल-नवाज़ी को नहीं छोड़ा
इसे तख़रीब के हर वार ने ता'मीर का इरफ़ान बख़्शा है