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नज़्म
तड़प सेहन-ए-चमन में आशियाँ में शाख़-सारों में
जुदा पारे से हो सकती नहीं तक़दीर-ए-सीमाबी
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
कैफ़ी आज़मी
नज़्म
हो सदाक़त के लिए जिस दिल में मरने की तड़प
पहले अपने पैकर-ए-ख़ाकी में जाँ पैदा करे
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
किसी ने ज़हर-ए-ग़म दिया तो मुस्कुरा के पी गए
तड़प में भी सुकूँ न था, ख़लिश भी साज़गार थी
आमिर उस्मानी
नज़्म
तड़प जाता हूँ मैं जब दिल ज़रा तस्कीन पाता है
उसी अंदाज़ से मुझ को सहारे याद आते हैं