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नज़्म
मैं तड़प तड़प के ग़म में रही बे-क़रार-ओ-मुज़्तर
मिरे दिल की धड़कनों को नहीं सुन सका ज़माना
राबिया सुलताना नाशाद
नज़्म
तू फ़क़त जिस्म के ज़ख़्मों पे तड़प जाता है
मैं हर इक क़ल्ब में सौ ज़ख़्म-ए-निहाँ पाता हूँ
मैकश हैदराबादी
नज़्म
तड़प रहे हैं जो तूफ़ाँ मिरे ख़यालों में
वो बंद-ए-ज़ब्त-ओ-तहम्मुल से आ न टकराएँ
ख्वाजा मंज़र हसन मंज़र
नज़्म
कौन सी हस्ती इन्हें दीवाना रखती दम-ब-दम
है तड़प किस की दिलों में किस लिए सीमाब हैं